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300वीं वर्षगांठ पर डेविड ह्युम “ज्ञान (रिजन) हमारी भावना (पैशन) का गुलाम है.”

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इस वर्ष डेविड ह्युम की तीन सौं वी वर्षगांठ पूरी दुनिया मनायेगी। स्टेनफोर्ड एनसाईक्लोपीडिया के अनुसार ह्युम अंग्रेजी भाषा का महानतम दार्शनिक हैं उसकी वर्षगांठ पोलेण्ड, रूस, फिनलैंड, ब्राजील, आस्ट्रिया आदि विश्व के प्रमुख देशों में मनाई जायेगी। जिस श्रद्धा और भक्ति से ह्युम के विचारों की पूजा पूरी दुनिया में की जाती है, ह्युम को सुकरात के बराबर तो नहीं, मगर सुकरात से बहुत नीचे की श्रेणी में भी नहीं माना जाता है। ह्युम ने आधुनिक राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र और धार्मिक दर्शन को गहरा प्रभावित किया है। सुकरात की ’’आर्ट ऑफ लाईफ’’ की तरह ही ह्युम का ’’रिजन इज स्लेव टू पैशन’’ सिद्धान्त मानव मात्र को अनुपम उपहार है। रिजन इज स्लेव टू पैशन का निष्कर्ष है कि भावना – पैशन को दबा नहीं सकते है। भावना अपने वेग से ज्ञान का रूप, प्रकार, वेश, मार्ग और स्वरूप बना देगी।

अन्य शब्दों में, रीजन या ज्ञान की बात मिथ्या भ्रम है। नैतिक नियन्त्रण की आवश्यकता है- मगर हम रिजन ज्ञान को पैशन, भावना के अनुसार ढ़ाल लेते है। अतः ज्ञान-रिजन-भावना, पैशन का गुलाम है। आधुनिक समाज की आधारशिलाओं में सिगमंड फ्रायड का नाम सबसे उपर है- और फ्रायड का मार्गदर्शन करने में ह्युम के विचारों का बड़ा हाथ रहा होगा। यह दर्शन शास्त्री मानते है। रूसो, एडम स्थिम और थोमस रेड ह्युम के शिष्यों में है। सोलहवीं सदी के इसाई धर्म का ह्युम कट्टर आलोचक था। न्यूटन की फिजिक्स के समान ही वह मनुष्य की भावना -पैशन- को मावन जीवन का आधार मानता था। इसी पैशन-भावना के सहारे से कानून, राजनीति, अर्थशास्त्र और धर्म की रूपरेखा बनती है। प्रकृति भावना का आधार है और भावना ही समाज और समाज के सभी नियमों का आधार है। बिना भावना की नैतिकता को ह्युम ने खोखला पाखण्ड बताया था। अमीरी-गरीबी, विदेश व्यापार और उपभोक्तावाद (यूटीलिटेरिजिस्म)पर ह्युम के दर्शन को एडम स्मिथ ने आगे फैलाया जो आधुनिक विश्व व्यवस्था का आधार है। ह्युम की 300वीं वर्षगांठ पर सभ्य समाज को बधाई।

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Pardarshee
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Dr. Bhupendra Bhandari Editorial Director

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